Search This Blog

Translate

Saturday, July 25, 2015

घर जाकर बोल दूंगा

Add घर जाकर बोल दूंगा 


पुराने जमाने की बात है।  किसी गाँव में एक सेठ रहेता था। उसका नाम था नाथूलाल सेठ। वो जब भी गाँव के बाज़ार से निकलता था तब लोग उसे नमस्ते या सलाम करते थे , वो उसके जवाब में मुस्कुरा कर अपना सिर हिला देता था और बहुत धीरे से बोलता था की  " घर जाकर बोल दूंगा "

एक बार किसी परिचित व्यक्ति ने सेठ को ये बोलते हुये सुन लिया।  तो उसने कुतूहल वश सेठ को पूछ लिया कि सेठजी आप ऐसा क्यों बोलते हो के " घर जाकर बोल दूंगा "


तब सेठ ने उस व्यक्ति को कहा, में पहले धनवान नहीं था उस समय लोग मुझे ' नथ्थू ' कहकर बुलाते थे और आज के समय मैं धनवान हूँ तो लोग मुझे 'नाथूलाल सेठ' कहकर बुलाते है। ये इज्जत मुझे नहीं धन को दे रहे है ,


इस लिए में रोज़ घर जाकर तिज़ोरी खोल कर लक्ष्मीजी (धन) को ये बता देता हूँ कि आज तुमको कितने लोगो ने नमस्ते या सलाम किया। इससे मेरे मन में अभिमान या गलतफहमी नहीं आती कि लोग मुझे मान या इज्जत दे रहे हैं। ... इज्जत सिर्फ पैसे की है इंसान की नहीं .. "ये जीवन का एक कड़वा सच है"

No comments:

Post a Comment

Blog Archive

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...